ये जो ज़मीन हमे मिली है
ये जो साँसे हमने ली है
एक सुरक्षित भविष्य पाया
ये जो अरमानो की चादर सिली है
इतनी आसानी से कँहा मिला ये
हमारा थोड़ी ये अनंत के लिए
देने वाला कँहा देता रहेगा
कँहा मिला ये फ़िज़ूल के लिए
केवल रहने की जगह ही नहीं है ये धरती
केवल ठहरने का स्थान ही नहीं है ये धरती
ये वो माँ है जिसने जन्म के बाद से हमें पाला है
गिरते सँभलते हमारे अंत से हमे बचाया है
पल-पल अपने पर आसरा दिया है
ये वो माँ है जिसने घडी-घडी हमे साँसे लेने का मौका दिया है
चिलचिलाती धूप में शीतल छाँव का साया मिला है कभी?
कड़कड़ाती ठण्ड में कोमल सी धूप ने गले से लगाया है कभी ?
दुःख में लिपटे बारिश के पानी में धुले हो कभी ?
लम्बे से दिन के बाद ठंडी सी हवा में बहे हो कभी?
धरा की ही देन है ये
बिन इसके कहाँ बसेरा?
रोटी मकान साँस सब इससे
बिन इसके कँहा सवेरा?
जिसने इतना कुछ दिया है, उसी को क्यों भुलाते है
अपने पापों के बोझ में इसे क्यों दबाते है
ये वो है जिसने हमे ज़िंदा रह अरमान बुनने दिए
ये वो है जिसने हमे ज़िंदा रह अरमान बुनने दिए
उन्ही अरमानो के पीछे अपने ही निर्माता को क्यों भुलाते है?
उन्ही अरमानो के पीछे अपने ही निर्माता को क्यों भुलाते है?